मजनू पन(आल्हा छंद)

फोन लगाबो चल थाना मा,तभे समझ मा आही बात।
छूट जही जम्मो मजनू पन,परही बने पुलिस के लात।

दुर्राये मा घलो लपरहा,मुँह नइ टारय सँउहे आय।
निच्चट नाक कान खाले हे,फोकट हमर तीर मेर्राय।

आनी बानी के गुठियाथे,लाज सरम ला दे हे बेंच।
अच्छा होतिस साँझ रात ले,एखर मुरकुटिया जै घेंच।

रोजे आय जाय के बेरा,हमला करत रथे परसान।
भूत रसे कस घूमत रहिथे,मरजादा के नइहे ज्ञान।

हरकइया बरजइया नइहे,कोनो नही धरैया कान।
दाई बहिनी ला नइ जानै,नइ जानै कखरो सम्मान।

असने मनके जनम धरे ले,बाढ़त हे भुँइया के भार।
चीर हराथे मरजादा के,प्रेम दया खावत हे मार।

आधा इँखरे डर बेटी ला,छोड़ावै शिक्षा इसकूल।
उज्जर सपना नइ देखन दै,बनगे हें आँखी के धूल।

छंदकार:-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर "अँजोर"
                  गोरखपुर,कवर्धा
                  03/08/2017

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